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तब मैं अपनी तन्हाई को
आषाढ़ी मेघो की बिजली
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फ़सल सुनहरी बो दी जाए
दिल की तड़पन, कसक सभी कुछ अब आंसू से धो दी जाये
फिर होठों पर मुस्कानों की फ़सल सुनहरी बो दी जाए
है तुमको उम्मीद अगर तो वो नहरें भी खोद सकेगा
पहले उसके हाथों में ला एक कुदाली तो दी जाये
सब कुछ लुटा बची है केवल रिश्तों की झीनी सी गठरी
अच्छा होगा ये गठरी भी अब राहों में खो दी जाये
हीरे हों सिक्के हों चाहे हो पत्थर का कोई टुकड़ा
कहलाती है भीख सदा जो बढ़ी आंजुरि को दी जाये
लिखते लिखते थकी कलम का केवल ये अरमान बचा है
शायद इक दिन कोई तवज़्ज़ो, उसकी गज़लों को दी जाये
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साथ निभाता है
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वैसा तो कुछ कहा नहीं था
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वज़्म में कोई सुनाये
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पत्थर बहुत सारे
उड़ रहे हैं अब हवा में पर बहुत सारे
झुक रहे हैं पांव में अब सर बहुत सारे
क्या वज़ह थी कोई भी ये जान न पाया
बस्तियों में जल रहे हैं घर बहुत सारे
एक दो हों तो मुनासिब, सामना कर लें
ज़िन्दगी के सामने हैं डर बहुत सारे
हो नहीं पाया नफ़े का कोई भी सौदा
एक तनख्वाह और उस पर कर बहुत सारे
एक आंधी, एक तूफ़ां, एक है बारिश
इक दिलासा, हैं यहां छप्पर बहुत सारे
इल्तिजायें सब अधूरी ही रहीं आखिर
एक मज़नूं और हैं पत्थर बहुत सारे
चल रहे हैं राह में रंगीन ले हसरत
चुभ रहे हैं पांव में कंकर बहुत सारे
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राम नहीं हो
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आज सुना जाते हैं
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