जाग सके मेरे लफ़्ज़ों से वह अहसास कहीं तो होगा
तुमसे बातें करते करते यह आभास कहीं तो होगा
सिंहासन पर ताजपोशियों की खातिर बढ़ती भीड़ों में
जो पत्थर को भी जीने का दे विश्वास, कहीं तो होगा
साठ बरस वादों के टुकड़ों पर पल कर भी ख्वाबीदा है
जो इन्सान बना न अब तक ज़िन्दा लाश कहीं तो होगा
बरस बरस के आश्वासन ने जिनको सर पर छांह नहीं दी
उनके सर पर तने एक मुट्ठी आकाश कहीं तो होगा
लैला,शीरीं और ज़ुलेखा से आगे की उल्फ़त लेकर
खुद को फिर से लिखता जाये वो इतिहास कहीं तो होगा
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हमेशा की तरह बहुत खूब!! मजा आया. 🙂 लिखती रहें.
खूव लिखा है, खास लिखा है… लिखते रहिये
जाग सके मेरे लफ़्ज़ों से वह अहसास कहीं तो होगा
तुमसे बातें करते करते यह आभास कहीं तो होगा
अच्छा लगा ..बधाई
साठ बरस वादों के टुकड़ों पर पल कर भी ख्वाबीदा है
जो इन्सान बना न अब तक ज़िन्दा लाश कहीं तो होगा
बरस बरस के आश्वासन ने जिनको सर पर छांह नहीं दी
उनके सर पर तने एक मुट्ठी आकाश कहीं तो होगा
सटीक बात ! बहुत खूब !
बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती
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