जाने कितने लोग हुए हैं इन गज़लों के दीवाने
दीगर है ये बात मान ले कोई, चाहे न माने
देती है तारीख गवाही, ऐसे दीवाने पन की
इसने ही तो लिखवाये हैं वर्क वर्क पर अफ़साने
खतावार है कौन ? सवाली होना होता आसां है
शमा नहीं तो कुरबानी को जायें कहां पर परवाने
सुखनवरी की इन गलियों में हम भी आवारा घूमे
रहे निभाते हर इक दर से हँसते हँसते याराने
मुट्ठी भर भर धूप समेटी, बिखराई थाली भर भर
अपने पास रखा न कुछ भी, आये अँधेरे समझाने
आईने की तफ़सीलों में क्या क्या ढूँढ़ें, कोई कहे
जिस कोने से देखें, हमको दिखते केवल अनजाने
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सुखनवरी की इन गलियों में हम भी आवारा घूमे
रहे निभाते हर इक दर से हँसते हँसते याराने
वाह! वाह! अति सुंदर. अच्छी लगी आपकी ग़ज़ल.